क्या आपको भी कभी घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है?

क्या आप जानते हैं कि हम और आप, लगभग पचास प्रतिशत से अधिक महिलाएं, घरेलू हिंसा से पीडि़त हैं। है चौंकाने वाला सचलगभग हर दो में से एक महिला को घरेलू हिंसा झेलनी पड़ती है। घरेलू हिंसा की समस्या किसी एक वर्ग, जाति, धर्म, समुदाय की महिलाओं से जुड़ी नहीं है। यह तो हम सभी महिलाओं की समस्या है। चाहे हम शहरी हैं या गांव की, पढ़ीलिखी हैं या अनपढ़।

घरेलू हिंसा का मामला समाज की समतावादी स्थिति और महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा है। ऐसी आम धारणा है कि महिलाएं अपने परिवारों में सबसे सुरक्षित हैं। वास्तविकता इससे बिल्कुल उल्टी है। विवाह और परिवार जैसी स्थापित सामाजिक संस्थाओं में महिलाओं की हालत दयनीय है। यह स्थिति खतरनाक एवं गम्भीर है, और इसके दुष्परिणाम दूरगामी रहते हैं।

घरेलू हिंसा एक ऐसा अपराध है, जिसे अक्सर छुपाया जाता है। इसके खिलाफ आवाज़ उठाने पर पीडि़ता को ही कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है।

 

किस हिंसा को घरेलू हिंसा कहा जाता है?

घरेलू दायरे में हो रही हिंसा को घरेलू हिंसा कहा जाता है। किसी महिला का शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक या यौन शोषण किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया जाना, जिसके साथ महिला के पारिवारिक सम्बंध हैंघरेलू हिंसा में शामिल है।

 

घरेलू हिंसा के कारण

  • घरेलू हिंसा का मुख्य कारण पितृसत्तात्मक सोच है। हमारे पुरुषप्रधान समाज में नारी को निम्नतर और पुरुष को बेहतर समझा जाता है। विवाह और परिवार संस्थाएं बराबरी पर आधारित नहीं है।
  • समतावादी शिक्षा व्यवस्था का अभाव
  • महिला के चरित्र पर संदेह
  • शराब की लत
  • इलॉकट्रानिक मीडिया पर महिला का वस्तुकरण
  • स्वावलम्बी बनने से महिला को रोकना

 

घरेलू हिंसा को खत्म करने के उपाय

  • मानसिकता में बदलाव
  • समाज और परिवार में बराबरी पर आधारित आमूल परिवर्तन
  • लड़कों और लड़कियों को एकजैसी परवरिश, एकजैसी शिक्षा, एकजैसे अधिकार और कर्त्तव्य
  • लड़कियों को अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का आत्मबल विकसित करना
  • बेटी को ससुराल में प्रताडि़त होने पर मायके वालों को उसे खुले दिल से वापस अपने घर आने के लिए कहना
  • दहेज दे कर पिता की सम्पति से बेटी को उसका कानूनी हिस्सा देना
  • लड़कों को पितृसत्तात्मक सोच के अनुसार, ‘‘मर्दानगी’’ को अपना कर, अपनी इंसानियत को बरकरार रखने के लिए, बराबरी की संस्कृति को अपनाना
  • घरेलू हिंसा को रोकने के कानूनी उपाय

 

घरेलू हिंसा अधिनियम

Domestic Violence Act

सामाजिक स्तर पर उपाय के साथसाथ संसद द्वारा पारित घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को 26 अक्टॅबर, 2006 से महिला बाल विकास मंत्रलय द्वारा लागू किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नीमहिलाओं के हर रूप और किशोरियों से सम्बंधित प्रकरण शामिल हैं। पीडि़त महिला किसी भी वयस्क पुरुष के विरुद्ध रिर्पोट दर्ज करा सकती हैं। पीडि़त महिला को घर से बाहर नहीं निकाला जा सकता है, चाहे घर पति के नाम पर भी हो। यह कानून काफी व्यापक है, प्रोटेक्शन ऑफिसर, सीजेएम-, शेल्टर होमस्, प्रोटेक्शन होम की व्यवस्था है, 24 घंटे की हेल्पलाइन है।

दहेज के विरुद्ध कानून की तरह, इस कानून को भी व्यवस्थागत समर्थन प्राप्त है। घरेलू हिंसा के विरुद्ध बहुत कम रिपोर्ट दर्ज कराई जाती है। और, आम तौर से दर्ज की गई रिपोर्ट पर, पुरुष मानसिकता से ओतप्रोत, पुलिस महकमा भी समझौता कराने में लग जाता है।

 

नरनारी दोनों इंसान हैं, और बराबरी पर आधारित विवाह, परिवार और समाज में, प्यार के रिश्तों के बने रहने से, अंततः बच्चों को भी सुरक्षित और खुशहाल वातावरण मिलेगा। इसीलिए घरेलू हिंसा का खत्म होना अति आवश्यक है।

हम, पटना डाइरीज़ में, ये चाहेंगे कि आप घरेलू हिंसा के खिलाफ खड़े हों। आपमें ऐसा करने की ताकत और शक्ति होनी चाहिए। तभी कानून आपका समर्थन कर सकता है।

2 Thoughts to “क्या आपको भी कभी घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ा है?”

  1. […] India, the Domestic Violence Act, 2005 includes within its purview the live-in-relationship under which a woman having a […]

  2. […] of commute. The terror of pickpockets amongst them is a major concern. Apart from stealing issues, molestation of girls and women happens every now and then, in the alibi of the […]

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