राहत कार्य का महत्त्व

28 सितम्बर, 2019, को सुबह उठी, तो हमारे मोहल्ले की रोड, घरों के कैम्पस में लगभग तीन-चार फीट पानी भरा हुआ था। लगातार बारिश हो रही थी। ऐसे तो पिछले तीन-चार दिनों से बारिश हो रही थी। घरों के बाहर निकलना बेहद मुश्किल था। बाजार का काम कैसे होगा? काम वाली सहयोगियों का आना कैसे हो पाएगा? कई सवाल मन में उठ रहे थे। फिर लगा कि मेरी स्थिति तो कईयों से बेहतर है। कई लोग जो ग्राउंड फ्रलोर पर रहते हैं, उनके घरों में पानी घुस गया था। उनका जीवन थम-सा गया।

आज 30 सितम्बर को बारिश अभी तक नहीं हो रही है। सुबह चिडि़यों का कलरव, कॉवों की कॉव-कॉव से अच्छा लगा।

विचार आया कि आज के समय परिवारों और समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन की बात को विराम ही देना पड़ेगा।

जीवित रहना, पीने का साफ़ पानी मिलना, खाना, बच्चों का दूध, सुरक्षित स्थानों पर पहुंचना – बुनियादी जरूरत बन जाती है।

सोशल मीडिया के माध्यम से इरफान अहमद नूरी का फ़ोन नम्बर देकर राहत पहुंचाना, आलोक का अपने स्टूडियो में लोगों का आश्रय देना, अंकिता द्वारा लड़कियों को पनाह देना चंद उदाहरण हैं। नागरिक अपने स्तर से कार्य कर रहे हैं। शहरी लोगों के बारे में आम घरणा है कि वे अपने-आप में ही मस्त रहते हैं। पड़ोसियों की भी उन्हें चिन्ता नही रहती। यह सही नहीं है।

1975 की बाढ़ की अभी तक मुझे सुखद अनुभूति होती है! उस समय, मैं बोरिंग रोड के गांधी नगर मोहल्ले में रहती थी। हमारे ग्राउंड फ्रलोर में 7-8 फीट पानी भरा हुआ था। काफी संख्या में हमलोग फर्स्ट फ्रलोर पर थे। उस वक्त का राहत कार्य हमारे पिता जी (स- महेन्द्र सिंह) ने बड़े पैमाने पर किया। पटना सिटी गुरुद्वारा से नाव का इंतजात करवा कर, पीने का पानी, दूध, रोटी और सब्जी के पैकेट को कई लोगों तक पहुंचाया। उनकी संवेदनशीलता और निपुण व्यवस्था मुझे बहुत अच्छी लगी।

सुख में तो अनेक साथी मिल जाते हैं; आनंद तो तब है, जब हम सबके दुःख के साथी बने।

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